Sunday, October 26, 2008

दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं


दोस्तों, पता नहीं आप लोगों को ये कविता याद है कि नहीं...दूसरी या तीसरी कक्षा मैं पढ़ी ये प्यारी सी पंक्तियाँ, स्मृति मैं ज्यों आयीं तो चेहरे पर मुस्कान तो बिखेर गई, साथ ही ये एहसास भी करा गई कि दीपो का ये त्यौहार अब उतना सरल रहा नहीं। पटाखों के शोर मैं इसका औचित्य कहीं खो सा गया है...खैर, ये समय है खुशियाँ मनाने का...तो आशा है कि आप कि यह दिवाली आप सब के लिए खुशिओं कि सौगात ले कर आए...


दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे
खुशी खुशी सब हंसते आओ
आज दिवाली रे

नए नए मैं कपड़े पहनू
खाऊन खूब मिठाई
हाथ जोड़ कर पूजा कर लूँ
आज दिवाली आई

मैं तो लूँगा खील खिलोने
तुम भी लेना भाई
फुल्झादियाँ अब खूब जलाओ
आज दिवाली रे

आज दुकाने खूब सजी हैं
घर भी जगमग जगमग करते
सुंदर सुंदर दीप जले हैं
कितने अच्छे लगते

दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे
नाचो गाओ खुशी मनाओ
आज दिवाली रे

:)

1 comment:

freshnewspirit said...

hi madam,
After a long time of almost 2 years i visited your blog, its so nice to read something sweet like this. I almost felt nostalgic, once this poem actually meant what the words say. Infact i used to eagerly wait for this festival just to relish those sweet delicacies, but the life around is so adulterated that purity has almost lost its value.

thanks for taking us all to our old days

regards

manju