Thursday, December 17, 2015

Law or Literature -I

आज एक परिचर्चा के माध्यम से डॉ किरण नंदा ने  सहजता से ये बताने कि कोशिश की कि  साहित्य भी समाज का दर्पण होता है.
साहित्य वो है जिसमें हित की भावना हो.
नारी का सम्मान क्या है इसे जानने के लिए कविता का माध्यम चुना जा सकता है.  कवियों ने कहा है की नर नारी बराबर हैं. राम  धारी सिंह दिनकर ने नर नारी के संबंधों की चर्चा की है उर्वशी में और कहा है की 'हम हो जाते हैं कृतार्थ अधिकार गवां  कर'...हमारे साहित्य में सीता, द्रौपदी, दमयंती, शिव और पारवती के उदहारण सम्मानपूर्वक दिए जाते  पर वास्तविकता ये है की आज भी बेटी के जन्म के बाद ये कहा जाता है की ''तुम्हारे कर्म खराब थे''
त्रेता में दशरथ की पुत्री शांता अपनी माँ कौशल्या से पूछती है...हे माँ, क्या तुमने मेरे लिए भी यज्ञ किये थे?  ये भाव  आज भी प्रधान है.
 धर्म की पावन पीठ से पीठासीन संत महंत ये उद्घोषणा करते हैं की 'पुत्रवती भव '...ये नहीं की संतान भव.
डॉ. नंदा ने  प्रश्न किया की अगर स्त्री देवी  है तो उसकी स्तिथि दयनीय क्यों...एक परिवर्तन की निश्चय ही आवशयकता है. 

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