Wednesday, December 16, 2009

A wonderful poem by Harivanshrai Bachchan


This poem has amazing potential...

जीवन में एक सितारा था
माना वोह बेहद प्यारा था
वोह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आँगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है

जो बीत गयी सो बात गयी ...

जीवन में था वो एक कुसुम
थे उस पे नित्य न्योछावर तुम
वो सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
जो मुरझाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पे
कब मधुवन शोक मनाता है ?

जो बीत गयी सो बात गयी...

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वोह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिटटी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों में कब मदिरालय पछताता है ?

जो बीत गयी सो बात गयी...

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घाट फूटा ही करतें हैं
लघु जीवन लेके आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घाट मधु के प्याले हैं
जो मादकता के मरे हैं
वो मधु लूटा ही करते हैं
वो कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घाट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है?

जो बीत गयी सो बात गयी...

One of my favorites...needless to say!
Enjoy the learning!

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